
चिलमन से निकलते धुएँ को देखते हुए। ………इन हसीं वादियों से आगे जा निकलती है मेरी सोच…। …… पहारों की सफ़ेद चोटियो पर सुनहरी धूप। …।मुझे याद आती है तुम्हारी। ……कि तुम होते तो हम हम होते। ....... याद अत्ति मीठी। ......... तुम्हारे आँचल की। ……।जैसे इस पल को मै जिया हूँ बीसिओं जनम तुम्हारे ही साथ। ……अलग अलग समय। …।अलग अलग जगह। …।पर वही रीझती मिठास इन पलों की। ……।जैसे तुम हो यहीं कहीं किसी फुलवाडी के पीछे छुपते हुए.......चुपके से आते हो मेरे पीछे से और ले लेतें हो मुझे अपनी उन परसुकूं बाहो में। ……। जितना मैं इन्हे जी जाता हूँ। ……।माफ़ करना उतना ही सिसक सिसक कर मरता हूँ किसी और जनम तुम्हे याद कर। ……। क्यों ? जो मैं भूल जाता हूँ अपने आप को तुम्हारे प्यार में। ……… और जो तन्हाई मेरी जान ले जाती है तुम्हारी गैर हाज़िरी में। .......... जो तुम मुझे भूल जाते हो…। यह सोचते हुए की तुम्हारा प्यार मुझे पा न सकेगा । …शायद तुम्हे पता नहीं कि जितना भरोसा है मुझे तुम्हारे प्यार पे…।उत्ना तुम्हे भी नहीं तुम्हारे अपने प्यार पे। ………चह्ता हूँ मै उसे छुपाते हो तुम जिसे। ……।वही इम्तिहान इ इश्क़ जिसे पार करने के मारे ने कितनी ही उम्रें गुज़ार छोड़ीं। ……। की जब हम निकले तो इंतज़ार की इन्तिहां हो चुकी थी। ....... भले ही थे मजबूर पर। … महोब्बत की इत्तलाह कर चले थे। ……। उन वादियों की ओर.... तुम्हारी ही ओर.………
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