जिस्म की सबूरी से बेहतर कला है इन आँखों की । …।जो दिखाती हैं ज़मान ए तसवउर की कहानियाँ गुज़रती हुई झील में सफीनो की तरह। …… जब इनकी ज़िद्द बने दीदार की। …… तोहफा न मिले कोई हमे मल्हार का। …बहती हैं यह जैसे कोई पानी में रोग लगे सवाल का ……मरती हैं किसी ख्याल मे…क़ि जिसे यह चाहें। उससे मिल न पाएं ……इन्ही की तम्मनाओं में खारा हो गया है समुन्दर। …।जैस कोई ईंट का बुलबुला। …… जिस्म की सबूरी से बेहतर है पेशा इन आँखों का........ तालुक तो नहीं नज़र आता सवालों का। …। पर घटती है इस जिस्म पर.... इनकी बेनुमा तन्हाई। ....... सादगी में जो कुछ है रखा। …।उसे कह देते हैं इस लिख्त में। ....... रिहा हो चुका जैसे कोई परिंदा। .......वह मिलाये है नज़रें, जो चढ़ता चाँद । ……उन आसमानी मंज़रों में पाये जो कुछ है उसकी अखिओं का तान। …तारा तारा गवाही देगा जब जा मिलेगगी उनमे इन दिलों की आज़ान .... खालिक है जो वहाँ उसे आना होगा जब तैयार होगा जहांन। .......इस सिद्दक मैं कोई रह जाए न पेशी। यही है वो ख्याल रामान
यह है सिलसिला तड़पती आहों का। …।कि नाचीज़ लियाकत के पन्ने फरोलते हैं शायर। …।आस्माँ भी गिनता होगा तारे बिखरे अपने ज़हन पे। …ज़ो अपने नील से भी उन्हें नोचता है कभी। ……।शालिमार मोहब्बत है वो जिसने कभी अपनी नज़रों में उन् तारों को बसाया होगा। ……।कि वो गिरते हैं टूटे ख्वाबों की बनिस्बत। …… जो हैं उस खुदा ही के…… उसकी हलालियत के चश्मो की बूंदे। ……।आ बनते हैं जो तुम्हारी आँखों का नूर। ……
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