Tuesday, September 22, 2015

Tumhi

वो कहती है यूँ मुझसे,....
धीमे से चलता कारवां ....उड़ा  रहा धूल ख्वाबों की …… शिद्दत से जिया हर एक पल.…… ला रहा मेरी मंज़िल को पास …… दूर आसमानों में सितारे टिमटिमाते हुए ……जैसे कि खुदा  ने लियाकत से उन ख्वाबों को खुद अपने हाथों से सजाया हो ....... ज़मीन पर बरसती ओस …… जैसे अपनी मीठी ठंडक मुझे देकर कहती हो ....... मैं हूँ वही सितारा जो कभी टिमटिमाता था तुम्हारे हाथों से दूर …… आज आ गिरा हूँ बनकर तुम्हारे चरणो की धूर …… शिद्दत से जिया तुम्हारा एक एक पल ……… मैं गिरा हूँ अर्शों से ……कभी  आज कभी कल ... छू रहा हूँ जो तुम्हारे पैरों के तल

सिमटती घटाएँ ……समाती  हैं नीले गगन के आँचल में ……जैसे कहती हों तुम भी खो जाओगे ना रहोगे इन जहानों में ……… संभाला है तुम्हे आज तक जो उन तपती हवाओं से………आज तुम्हे छोड़ता हूँ कुदरत के ख़ज़ानों में…… रुको न रुको तुम……अपनी  तहज़ीब की इनाकत  में .......पर यह कहेंगे वो कल तुमसे ....... तुम क्यों रहे यूँ बेमुख……… जब खुदा  था  इन जहानों में ……

खुलते तालों की आहट.…….… आज कानों में संगीत सा लगे...... यह मंज़र या वो है एक ही रास्ता जा रहा उस ओर जहां राहें गुम हो जाती हैं किसी इकाई में....... ज़बान है यह कहीं की ………जहां से उतरे हैं सभी दिलदार मेरे यार........... आज तक इस ज़मीन पर......... न चाहते हुए भी कहूँगा कि जितना प्यार करता हूँ मैं आज़ादी से....... उतना ही करता हूँ राहों की इस लाख बर्बादी से

आज हुआ है आलम पार .... उन तमन्नाओं का जिन्हें ज़हन में संभाले हूँ कई युगों की क़यामत से  …… बनकर छूटती  हैं जैसे एक कश्ती जो निकली हो पार घोर तूफानों के ……  

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