Sunday, August 9, 2015

Nirmohi

सर्वप्रिय निरमोही की दास्ताँ , इन अक्षरों में है समाई।
जब हम जाएँ बिखरें उन कणियों की भांति।
मैं इस अंदाज़ में लिखता हूँ जिस में न है कोई मिलावट।
पर जब यह सवाल सामने आये कि क्या है इन  सब का तात्पर्य स्वर,
तो मैं यही कहूँ कि यह है मेरे दिल की हालत,
बयान करता हूँ किसी बिखरी शायरी की ज़ुबानी।
अब कब तक है यह मुमकिन,कि मैं आपकी समझ के अंदाज़  में अक्षर मरोड़ूं । एक झुण्ड है जो ख्यालों का, गुज़रता जा रहा घोड़ों की तरह। यही कहूँगा,.... यूँ मेरे ख्यालों की कहानी.... गुम है कहीं ..... 

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